pub-7443694812611045 ईश्वर की भक्ति के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होती :- मनोहर जी महाराज (सांवरिया सरकार )। - Agnichakra

ईश्वर की भक्ति के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होती :- मनोहर जी महाराज (सांवरिया सरकार )।





मोहम्मद फरहान काजी/रन्नौद:- अकाझिरी गांव में श्री बाग वाले हनुमान जी मंदिर रामलीला मैदान मैं चल रही श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के आज द्वितीय दिवस पर ध्रुव के प्रसंग की कथा सुनाई जिसे सुनकर श्रोता भाव विभोर हो गए।भागवताचार्य ने बताया कि अयोध्या नरेश राजा उत्तानपाद के कोई संतान न होने के कारण रानी सुनीति के बहुत आग्रह करने के बाद अयोध्या नरेश राजा उत्तानपाद ने दूसरा विवाह रानी सुरुचि के साथ किया।सुरुचि नें राजमहल में कदम रखते ही अपनी मर्जी के मुताबिक, राज चलाना प्रारम्भ कर दिया।उसने राजा उत्तानपाद से साफ शब्दों में कह दिया कि बडी रानी को महल से बाहर निकलवाने का आदेश और भोजन में सब्जी और रोटी एक साथ न देनें का आदेश जारी करवा दिया।लेकिन बडी रानी सुनीति पतिव्रता नारी थी ,उसने यह सब सहते हुये पतिव्रत धर्म का पालन किया।धीरे धीरे समय बीतता गया लेकिन विधि के विधान को कौन जान सकता है।बडी रानी सुनीति के वह दिन आ गया, जिस दिन का उन्हें बेसब्री से इन्तजार था।नवमास परिपूर्ण होने पर बहुत सुंदर पुत्र को जन्म दिया।इधर छोटी रानी सुरुचि भी गर्भ धारण करके एक पुत्र को जन्म दिया।ब्राम्हणों द्वारा नामकरण सँस्कार कराया गया।बडी रानी सुनीति के पुत्र का नाम ध्रुव और छोटी रानी सुरुचि के पुत्र का नाम उत्तम रखा गया।धीरे धीरे दोनों पुत्र बडे़ होनें लगे।एक दिन की बात है अयोध्या नरेश महाराज उत्तानपाद अपने दरबार में छोटी रानी सुरुचि के पुत्र उत्तम को गोदी में लिए हुये बैठे थे।तभी अचानक बडी रानी सुनीति का पुत्र ध्रुव भी कहीं से खेलता हुआ दरबार आ गया तो महाराज नें उसे भी उठाकर अपनी गोद में बिठा लिया और प्यार करनें लगे।तभी अचानक छोटी रानी नें ध्रुव को महाराज की गोद में बैठा देखकर आग बबूला हो गयी और तुरन्त ही ध्रुव की बाँह पकडकर महाराज की गोदी से नीचे उतार दिया।और कहा अगर बैठना ही है तो जा अपने पिता की गोदी में बैठो।भक्तों आज वह छोटा सा बालक ध्रुव रोता हुआ वहाँ से चल दिया और अपनी माँ के पास गया।माँ नें रोने का कारण पूँछा तो पूरी कहानी रो रो कर अपनी माँ को बताई और बालक ध्रुव नें अपने पिता के बारे में पूँछा तो आज मैया सुनीति कहने लगी ,बेटा ध्रुव तुम्हारे पिता विष्णु जी है और जाओ उन्हीं की गोदी में बैठो।भक्तों आज पाँच वर्ष का छोटा बालक ध्रुव भगवान विष्णु से मिलने को वन को चल पडा लेकिन धन्य है, मैया सुनीति, जिन्होंने ध्रुव से कहा ,वन को जानें से पूर्व महाराज और छोटी रानी सुरुचि को प्रणाम करके ही वन जाना।ध्रुव महाराज और छोटी रानी को प्रणाम कर वन को चल दिये।रास्ते में नारद जी का मिलन होता है। पहले तो नारद जी नें घर वापस भेजने के बहुत प्रयत्न किए,लेकिन सफल नहीं हुये।अन्त में एक मन्त्र दिया और कहा, इसका जाप करना,भगवान श्री हरि अवश्य मिलेंगे।छोटी सी उम्र का बालक ध्रुव आज तपस्या में लीन हो गया और नारद जी द्वारा बताये गये मन्त्र का जाप करने लगा।और फिर भगवान श्री विष्णु जी बालक का दृढ़ निश्चय देखकर प्रकट हुये और कहा ,बेटे ध्रुव ! मैं तुम्हारी तपस्या से बहुत प्रसन्न हूं ,वरदान माँगो।बालक ध्रुव कहने लगा “हे प्रभू मुझे तो आपकी गोद में बैठना है”।भगवान श्री विष्णु नें जिस समय बालक ध्रुव को गोद में बिठाया है। इसलिए भक्ति करने के लिए वृद्धावस्था का इंतजार नहीं करना चाहिए। हमें सदैव भगवान की भक्ति करना चाहिए।

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