pub-7443694812611045 महा पर्व - / एक माह की इबादत के बाद,दिखा चांद मनाई गई ईद,ईदुल फित्र का पर्व बड़े ही हर्ष उल्लाश से, मनाया गया - Agnichakra

महा पर्व - / एक माह की इबादत के बाद,दिखा चांद मनाई गई ईद,ईदुल फित्र का पर्व बड़े ही हर्ष उल्लाश से, मनाया गया

 




शहर काजी साहब के पुत्र जनाब हाफिज फैजान साहब ने अदा कराई ईदुल फित्र की नमाज,। उठे हाथ अमन चैन शांति के लिए की गई दुआ ए खास,।।




मोहम्मद फरहान काजी@ रन्नौद, / शिवपुरी,,।। जिले की नगर परिषद रन्नौद में वीते एक माह से पाक साफ पवित्र महीना रमज़ान के मौके पर नगर के तमाम मुस्लिम बन्दुओ ने जिनमे बड़े बुजुर्ग व बच्चे एवं महिला साथ ही छोटी छोटी बच्चियों ने पूरे एक माह तक रोजे रखे ओर उन रोजो के हर रोजेदार के लिए 18 घण्टे भूख प्यास के साथ अल्लाह रब्बुल इज्जत की इबादत की गई जिसके बाद देर शाम शुक्रवार 7 बज कर 5 मिनिट पर ईदुल फित्र का चांद दिखा छोटे छोटे बच्चो ब बड़े बुजुर्ग में एकाएक खुशी की लहर दिखाई दी गई ,उसके बाद ईद की तैयारी शुरू की गई साथ ही जगह जगह शिर्खुरमा व सिमियां बनने बनाने का सिलसिला जारी हुआ और सुबह ईद की नमाज अदा की गई।।



जानकारी के अनुसार, आज नगर रन्नौद में ईदुल फित्र का त्योहार बड़े ही हर्ष उल्लाश के साथ मनाया गया,यह त्योहार एक माह की इबादत के बाद ईदुल फित्र का चांद दिखते ही मनाया जाता है ,  रमज़ान व मीठी ईद की बड़ी ही फजीलत बताई गई है, अल्लाह के नेक बंदा बंदी एक माह अल्लाह रब्बुल इज्जत की इबादत हम्दोशना करते है, ओर अपने गुनाह को 27 वी सबेक़द्र में माफ कराते है और आगे से नेक बनने व गुनाह से तौबा करने की दलील पेश करते है अल्लाह की बारगाह में बता दे की लेलाईतुल कद्र की रात में अल्लाह तआला बन्दों की दुआ कुबूल करते है,।।





बता दे कि एक साल में दो बार ईद का पर्व मनाया जाता है,रमजान के महीने की आखिरी रात का चांद देखकर पहले दिन मीठी ईद मनाई जाती है. वहीं रमजान के करीब दो महीना 10 दिन बाद बकरीद का त्‍योहार मनाया जाता है. ।।आज मुस्लिम समुदाय के बीच ईद-उल-फितर मनाई जा रही है. लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि आखिर ईद का त्‍योहार साल में दो बार क्‍यों मनाया जाता है? यहां जानिए इसके बारे में.।।

ईद-उल-फितर 
ईद-उल-फितर या मीठी ईद पहली बार 624 ईस्वी में मनाई गई थी. कहा जाता है कि इस दिन पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब ने बद्र के युद्ध में विजय हासिल की थी. पैगम्‍बर साहब की जीत की खुशी जाहिर करते हुए लोगों ने उस समय मिठाइयां बांटीं थीं. कई तरह के पकवान बनाकर जश्‍न मनाया था. तब से हर साल बकरीद से पहले मीठी ईद मनाए जाने का सिलसिला जारी है।।




कुरआन के अनुसार मीठी ईद को अल्लाह की तरफ से मिलने वाले इनाम का दिन माना जाता है. इस्लामी कैलेंडर के नौवें महीने में पूरे माह रोजे रखे जाते हैं और जब अहले ईमान रमजान के पवित्र महीने के एहतेरामों से फारिग हो जाते हैं और रोजों-नमाजों तथा उसके तमाम कामों को पूरा कर लेते हैं तो अल्लाह एक दिन अपने इबादत करने वाले बंदों को बख्शीश व इनाम से नवाजता है. बख्शीश व इनाम के दिन को ईद-उल-फितर का नाम दिया गया है. ।।




ईद-उल-अजहा यानी बकरीद
वहीं अगर ईद-उल-अजहा की बात करें तो इस दिन का इतिहास हजरत इब्राहिम अलैहिम सलाम से जुड़ी एक घटना से है. ये दिन कुर्बानी का दिन माना जाता है. कहा जाता है कि अल्लाह ने एक दिन हजरत इब्राहिम अलैहिम सलाम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी. हजरत इब्राहिम अलैहिम सलाम अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे, लिहाजा उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया. हजरत इब्राहिम अलैहिम सलाम
जैसे ही अपने बेटे की कुर्बानी देने वाले थे कि उसी वक्त अल्लाह ने अपने दूत को भेजकर बेटे को एक बकरे से बदल दिया. तभी से इस्‍लाम में बकरीद मनाने की शुरुआत हुई।।






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